सौरभ कुमार
मक्के की हरी बालियों ने ‘कोसी क्षेत्र’ के तमाम किसानों को सतरंगी सपने दिखाए थे। उनकी मेहनत रंग लाई और बिहार में मक्के का रिकार्ड पैदावार हुआ। पर बीते तीन जुलाई को कंेद्र सरकार ने अदूरदर्शी नीति के तहत मक्के के निर्यात पर रोक लगा दिया। निर्यात पर पाबंदी लगाने का कारण भी विरोधाभासों से भरा है। सरकार ने महंगाई को नियंत्रित करने की दुहाई दी है लेकिन मक्के की कीमतों में कोई खास उछाल नहीं आया था। तकरीबन चार लाख टन मक्का बंदरगाहों, रेलवे वैगनों और ट्रांसपोर्ट कंपनियों के गोदामों में है।
गौरतलब है कि बिहार में रबी के मौसम में मक्के का सर्वाधिक उत्पादन होता है। जो अप्रैल में तैयार हो जाता है। जबकि दक्षिण भारत के राज्यों में मक्का की फसल अक्टूबर से आनी शुरू होती है। केंद्र सरकार आमतौर पर जुलाई से अक्टूबर तक मक्के के निर्यात पर रोक लगाती है। इसका नुकसान बिहार के किसानों को होता है। मक्के को औने-पौने दामों में बेचकर किसान भयानक संकट से गुजर रहे हैं। उनकी विडंबना ही शायद उनकी नियती बन गई है। ‘कोसी क्षेत्र’ से विदर्भ जैसी चीत्कार गूंज रही है लेकिन विकलांग नीतियों और विक्षिप्त नियंताओं को इसकी कोई परवाह नहीं है।
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